Friday, September 23, 2011

Rahu Ketu Jupiter in Lal Kitab

Some discussion :

Pandit R. Sharma :


राहू -केतू : राहू केतू जो पाप से गिने है, ग्रह सभी को घुमाते हैं |
गुरु अकेला दो को चलावे , घूमते पर वह बुध में है ||

सात , नौ हो या माया चौरासी , पाप फर्क दो ही का है |
ऊपर नीचे जगत के अन्दर झगड़ा इन दो ही का है ||

पाप अगर सब दुनिया छोड़े , सात ग्रह बच जाता है |
राशी बारह में सात ग्रह से , नर्क चौरासी कटता है ||..........

कृपया ये भेद खोलें ... (गुरु अकेला दो को चलावे ) यहाँ किन दो का जिक्र है ???
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Vijay Goel


यहाँ पर दो राहू केतु ही है , गुरु दोनों को चलाता है और इन दोनों ग्रह का दायरा बुध की गोलाई में बंदी हुई है.
बुध चूँकि अक्ल है राहू केतु इस अक्ल के दायरे में काम करते है.
राहू पाप करने का लालच पैदा करता है.
केतु, गुरु का चेला है इसलिए पुण्य करने के लिया मजबूर करता है.
गुरु चूँकि किस्मत है, इसलिए राहू-केतु यानि पाप-पुण्य इस के अभीन अंग है.

जो मुझे समझ में आया वो लिख दिया है.
धन्यवाद.
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Rahu is never directed by Jupiter.
Ketu is chela, he is directed by Jupiter.

केतु , शुक्र का फल है.
शुक्र = राहू + केतु
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Pandit R. Sharma वैसे मेरी जानकारी अनुसार केतू तो मंगल का 'बलि का बकरा' है जैसे राहू शनि की गुप्त चाल चलता है , वैसे ही केतू तो मंगल की चलता है ......गुरु की नहीं ... || नारायण-नारायण ||
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Vijay Goel
र.. जी ,
राहू और गुरु का सम्बन्ध अलग है, दोनों एक दूसरे को चलाते है, कभी राहू, गुरु को चुप करवाता है तो कभी गुरु, राहू को चुप करवाता है.

अगर राहू उच्च होता है तो गुरु दोनों जहांन का मालिक होगा , अगर राहू नीच होगा तो गुरु केवल दुनियावी होगा.

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Best Wishes,
Vijay Goel
Jyotish Visharad.
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